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एक जलती हुई झोपड़ी के लिए चल पड़ा गाॅंव सारा तो अच्छा लगा।”

मोहन तिवारी

गाजीपुर। ‘साहित्य चेतना समाज’ के तत्वावधान में देश के ख्यात मंच-संचालक, ‘गाजीपुर गौरव सम्मान’ से सम्मानित कवि हरिनारायण ‘हरीश’के तिलक नगर काॅलोनी स्थित आवास पर उनके 78 वें जन्मदिवस के अवसर पर एक ‘सरस काव्यगोष्ठी’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ समस्त कवियों के द्वारा माॅं वीणापाणि के चरणों में दीप-प्रज्वलन एवं पुष्पार्चन के उपरान्त चर्चित कवयित्री संज्ञा तिवारी की वाणी-वंदना से हुआ। युवा ग़ज़लगो गोपाल गौरव ने अपनी ग़ज़ल –
“बिना कश्ती के कैसे जाओगे
घर है नदी के पार उसका,
उठो अब घर चलो ‘गौरव’
बहुत हुआ इन्तज़ार उसका।”
सुनाकर अतीव प्रशंसा अर्जित की; तदुपरांत युवा नवगीतकार डॉ.अक्षय पाण्डेय ने कवि के 78वें जन्मदिन पर शताब्दी साहित्यकार बनने की मंगलकामना के साथ स्नेहिल बधाई दी। अपने वक्तव्य में हरीश जी के अवदान को रेखांकित करते हुए कहा कि “यदि डॉ.पी.एन.सिंह ने अपने समय-समाज को अकादमिक-संस्कार दिया है तो कवि हरीश ने अपने उत्कृष्ट संचालन के द्वारा भारतीय मंचों को एक श्रेष्ठ काव्यात्मक-संस्कार दिया है।” इसी के साथ ही डाॅ.पाण्डेय ने अपना नवगीत-
“जन-मन में हो प्रीति
प्रीति में जन-मन हो भाई!
जीवन में हो गीत
गीत में जीवन हो भाई!”
सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। इसी क्रम में कवयित्री संज्ञा तिवारी ने अपना गीत-
“तुझे दिल में बसाना चाहती हूॅं।
मगर कोई बहाना चाहती हूॅं।
बुलाकर देखते इक बार मुझको,
मैं तेरे पास आना चाहती हूॅं।।”
सुनाया और श्रोता मंत्रमुग्ध हो,रससिक्त होते रहे। ‘साहित्य चेतना समाज’ के संस्थापक अमरनाथ तिवारी ‘अमर’ ने हरीश जी को जन्मदिन की अकूत बधाई देते हुए कहा कि -“हमारी संस्था, हरीश जी जैसे महनीय साहित्यिक व्यक्तित्व को ‘गाजीपुर गौरव सम्मान’ प्रदान कर स्वयं गौरवान्वित हुई।” साथ ही अपनी व्यंग्य कविता –
“बनकर रहना
अपने पति के चरणों की दासी,
घर को बनाना स्वर्ग
और घर वालों को स्वर्गवासी।”
सुनाकर श्रोताओं को ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया। महाकाव्यकार कामेश्वर द्विवेदी ने कवि हरीश के जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं दी, साथ ही अपनी राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत छांदस कविता –
“अनगिन प्रतिभाऍं इस भव्य भारत की,
चाॅंद चूम ली हैं अब भानु पै पयान है।
सारा विश्व चकित है देख करतब, यह
शोभनीय परम अनूप हिन्दुस्तान है।”
सुनाकर खूब प्रशंसित रहे।इस कार्यक्रम के केन्द्रीय व्यक्तित्व हरिनारायण ‘हरीश’ ने अपने जीवन के अविस्मरणीय साहित्यिक संस्मरणों को सुनाते हुए अपनी चर्चित ग़ज़ल –
“मत लिखो अब हास की परिहास की बातें।
अब लिखो कुछ भूख की कुछ प्यास की बातें।”
पढ़ी और श्रोता आनंदित हो अनवरत ताली बजाते रहे। अध्यक्षीय काव्यपाठ के रूप में नगर के वरिष्ठतम कवि अनन्तदेव पाण्डेय ‘अनन्त’ ने अपनी ग़ज़ल –
“बस में चढ़ते बुजुर्गों के उठ गए जवाॅं,
जिस किसी ने निहारा तो अच्छा लगा।
एक जलती हुई झोपड़ी के लिए
चल पड़ा गाॅंव सारा तो अच्छा लगा।”
सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी साथ ही कवि हरिनारायण ‘हरीश’ के साथ की सुदीर्घ काव्य-यात्रा के मंचीय संस्मरणों को सुनाया। अन्त में समस्त स्वजन-परिजन के साथ ही उपस्थित कवियों ने कवि हरीश को निरामय जीवन जीते हुए शतायु होने की मंगलकामना के साथ ही जन्मदिन की अशेष बधाई दी।श्रोता के रूप में वंशनारायण राय, डॉ.रविनंदन वर्मा ,मंजु हरीश , अनामिका, अक्षिता,रक्षिता , अनुराग आदि उपस्थित रहे।
इस सरस काव्यगोष्ठी की अध्यक्षता नगर के वरिष्ठ कवि अनन्तदेव पाण्डेय ‘अनन्त’ एवं सफल संचालन सुपरिचित नवगीतकार डॉ.अक्षय पाण्डेय ने किया। अन्त में संस्था के संगठन सचिव प्रभाकर त्रिपाठी ने समस्त सहभागी कवि गण एवं आगंतुक श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया।

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