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संघ की विचारधारा से जुड़ रहा मुस्लिम समाज, इंद्रेश जी का प्रयास ला रहा रंग
- पूर्वांचल की स्थापित परिपाटी के मिथक को तोड़ती ग़ाज़ीपुर की दो विभूतियां
(डॉ इरफान )ग़ाज़ीपुर। जहां पूरे देश मे सेकुलरिज्म और कम्युनलिज्म पर बहस हो रही है। सेकुलर लोगों की जमात अपने वोट के लिए मुसलमानों को यह समझाने में लगी है कि हर कीमत पर आरएसएस से दूरी बनाकर रहो, भाजपा को हराते रहो। बस कुछ परिवारों ने देश में अपनी हुकूमत के लिए मुसलमानों का इस्तेमाल बंधुआ मजदूरों की तरह किया, और यह ख़ास ख्याल रखा कि किसी भी तरह मुसलमान भाजपा में जाने न पाए। गाहे बगाहे यदि किसी ने प्रयास भी किया तो सेकुलर दलों के छुटभैये नेता घर पहुंचकर ऐसी मजम्मत करते हैं कि लोग तौबा कर लें। सपा और कांग्रेस के नेताओं ने अपने पॉकेट लीडर के द्वारा मुस्लिम मुहल्लों में एक खौफ क़ायम रखा। ऐसा ख़ौफ की मुसलमान चाहकर भी भाजपा में जाना तो छोड़ दीजिए मिलना भी पसंद नही करता। इसलिए कोई मुस्लिम किसी आयोजन में सिर्फ यही बचाने में लगा रहता है कि कही उसकी तस्वीर किसी आरएसएस वाले के साथ न आ जाये नहीं तो उसी के क़ौम के लोग उसे गाली देंगें और क़ौम, मजहब का गद्दार करार दे देंगे। इसका बड़ा खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ा। मुस्लिम-मुस्लिम करते-करते बहुसंख्यक हिन्दुओ की सहानभूति खो दी। भाजपा की सरकार बनी तो सरकारी कारिंदों ने यह समझ लिया कि मुसलमानों का कोई माई बाप नही है, इसलिए हर स्तर पर इनके साथ शोषण होने लगा। अपने छोटे से काम के लिए इनको बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। हमेशा विरोध की राजनीति करते करते मुसलमान सबका विरोधी दिखने लगा। एक बड़ी तादाद इनसे मतलब ही नही रखने लगी। इसका असर रोजी रोटी और दैनिक समस्याओं पर पड़ा। पढ़ाई से कोसों दूर मुसलमान बस रहमो करम पर जिंदगी गुजारने लगा। इसके लिए सबसे बड़े जिम्मेदार वही हैं जो मुसलमानों के नाम पर सत्ता में तो आये लेकिन कभी अपनी बिरादरी के लिए और कभी अपने परिवार के लिए ही किये। मुसलमानों को दोराहे पर खड़ा कर दिया। अगर मुसलमान केवल संवाद करता, इंसानियत के रिश्तों को राजनीति से अलग समझता तो पक्के तौर पर संघ और भाजपा में उसके भी लोग रहते तो उसे किसी छोटे मोटे काम के लिए किसी दलाल का मोहताज नही होना पड़ता।
खैर, बहुत लंबे समय बाद आरएसएस के बड़े नेता इन्द्रेश कुमार ने बड़ी पहल करते हुए मुसलमानों से संवाद शुरू किया। बड़ी संख्या में मुसलमान इन्द्रेश कुमार के अभियान से जुड़कर संघ के नजदीक गए और संघ को समझने का प्रयास किया। जो नफरत की खाई थी वो तो धीरे धीरे भरने लगी। मुसलमानों को गुलाम बनाकर रखने वाली पार्टियां बहुत छटपटाने लगी कि मुसलमानों के मन मे शक और नफरत फिर से भरा जाए लेकिन बदलाव आने लगा। जब मुसलमानों में नई सोच विकसित हुई कि मिलने जुलने में कोई बुराई नही है तो मुस्लिम समाज के लोगो ने उन रहनुमाओं को ठुकराना शुरू कर दिया जो उनकी बर्बादी के लिए जिम्मेदार थे। इतना कुछ लिखने के पीछे सोशल मीडिया पर फैल रही दो तस्वीरे हैं, जिनका ताल्लुक पूर्वांचल में सपा का गढ़ माने जाने वाले ग़ाज़ीपुर से है। ग़ाज़ीपुर के दिलदारनगर के रहने वाले कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ख़ाँ वैसे तो इतिहास के संग्रहकर्त्ता हैं और क्षेत्रीय इतिहास के लिए शिद्दत से काम कर रहे हैं।
4 जुलाई, 2019 को कुँअर नसीम रज़ा को वाराणसी के पराड़कर भवन में ‘राष्ट्रीय दस्तावेज़ संरक्षण पुरस्कार’ दिया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आरएसएस के केंद्रीय नेता इन्द्रेश कुमार थे। इन्द्रेश कुमार ने कुँअर नसीम रज़ा को सम्मानित किया। ग़ाज़ीपुर के लिए गौरव की बात थी। कुँअर नसीम रज़ा के पूर्वजो की बात संघ तक पहुंची। नसीम रज़ा के पूर्वज कुँअर नवल सिंह उर्फ दीनदार ख़ाँ के बारे में जब इन्द्रेश कुमार को पता चला तो उन्होंने दिलदार नगर आने की इच्छा व्यक्त की। जब नसीम रज़ा को इन्द्रेश कुमार ने पुरस्कार दिया तो कमसार क्षेत्र के मुसलमानों में कम सपा के समर्थक मुस्लिमो और सपा नेताओं में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। नसीम रज़ा को समझाने के साथ धमकी भी दी गयी और खुदा का खौफ दिखाकर आरएसएस से दूर रहने की सलाह दी गयी। ख़ैर बात चलती रही और अपने को सेकुलर दिखाने वाले सूरमाओं ने फेसबुक और सोशल मीडिया पर ही अपनी भड़ास निकाली और नफरत फैलाने का काम किया। इससे बड़ी बात तब हुई, जब 2 हज़ार से अधिक पठानों ने कुँअर नसीम रज़ा के नेतृत्व में दिलदारनगर गाँव में ही कार्यक्रम रखकर इन्द्रेश कुमार को बुला लिया। इन्द्रेश कुमार दिलदारनगर गए, दीनदार ख़ाँ के कोट पर इनकी स्मृति में दिलदारनगर केे 333वीं स्थापना वार्षिकोत्सव का शानदार आयोजन 26 अगस्त, 2021 को हुआ। कुँअर नसीम रज़ा द्वारा संपादित ऐतिहासिक पुस्तक ‘स्मारिका मुहम्मद दीनदार ख़ाँ : एक मुग़लिया जागीरदार’ का विमोचन किया। तत्पश्चात् दीनदार ख़ाँ के मज़ार पर पुष्प अर्पित किए तथा मज़ार स्थल केे समीप ही 3 वृक्षारोपण किया। नसीम रज़ा के घर पर दोनों पक्षों का जमावड़ा था। यानी दीनदार ख़ाँ की जन्मस्थली से इनके हिन्दू सकरवार राजपूत वंशज जो समहुता, मोहनियां, भभुुआ, बिहार से आये थे वहीं दीनदार ख़ाँ की कर्म स्थली दिलदारनगर केे मुस्लिम-पठान वंशजों के साथ इन्द्रेश कुमार मिले। जन्म से हिन्दु, धर्म सेे मुस्लिम तथा कर्म से इन्सान कहलाने वाले कुँअर नवल सिंह उर्फ मुहम्मद दीनदार ख़ाँ के दोनों मुस्लिम-राजपूत वंशजो के साथ बैठकर तस्वीरें खिंचाई और सांझा परिवार, संस्कृति और सांझे पूर्वजों के रक्त का 400 वर्षीय इतिहास का जीता जागता प्रमाण भी देखा। पूरे देश मे इसकी चर्चा हुई! आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने जब यहाँ की दास्तान को सुना तो कहा कि सबका डीएनए एक है! इन्द्रेश कुमार ने कहा कि पूर्वजो, परम्पराओ, संस्कृति, वतन और खून से हम सब एक हैं। दोनों ख़ानदानों को एक साथ देखकर अपार प्रसन्नता हो रही है।
इन्द्रेश कुमार के दिलदारनगर पहुंचने के बाद सपा के नेताओ में प्रतिक्तिया हुई। कुछ नेताओं ने खुलकर नसीम रज़ा को धमकी दी। संघ के एक नेता के किसी मुसलमान के घर चले जाने और मेल मिलाप की बात करने से कौन सा सेकुलरिज्म खतरे में आ गया था। मुसलमानों ने जब इन्द्रेश कुमार को रूबरू सुना तो उनके मन की तमाम गलतफहमियां दूर हो गयीं, बस यही तो सेकुलर दल और मुसलमानों का वोट लेने वाले नहीं चाहते थे। लेकिन संघ से डर का मिथक तोड़ दिया कुँअर नसीम रज़ा ख़ाँ ने। संघ के बड़े नेता इंद्रेश कुमार ने तो मुस्लिम इलाके में जाने और मुसलमान के घर खाने से भी कोई गुरेज नही किया। सबसे दिल से मिले, सबको गले लगाया। जब उनके दिल मे कोई भावना नहीं थी तो फिर डर किस बात का।
दूसरी घटना भी ग़ाज़ीपुर से जुड़ी है। साहित्यकारों के संगठन ने साहित्य चेतना समाज के तत्वावधान में चेतना महोत्सव 2023 का कार्यक्रम 19 मार्च 2023 को ‘ग़ाज़ीपुर गौरव सम्मान’ के रूप में आयोजित किया। ग़ाज़ीपुर गौरव सम्मान के लिए ग़ाज़ीपुर के बहरियाबाद के मूलनिवासी एवं जाने माने शिक्षविद्, सक्षम प्रशासक, भारत के योजना आयोग में सलाहकार, दो विश्वविद्यालयों के कुलपति रह चुके और वर्तमान में एसोसिएशन ऑफ इन्डियन यूनिवर्सिटीज के महासचिव प्रोफेसर फुरक़ान क़मर का नाम चुना। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आरएसएस के अखिल भारतीय नेता इन्द्रेश कुमार थे। कार्यक्रम शहर ग़ाज़ीपुर में ही था। इंद्रेश कुमार ग़ाज़ीपुर पहुंचे हजारों बुद्धिजीवियों के सामने प्रोफेसर फुरक़ान क़मर को सम्मानित किया। वहाँ आमंत्रित लोगो मे मुसलमान और अन्य दलों के नेता भी थे। जब इन्द्रेश कुमार ने संबोधन शुरू किया तो लोग उनको ध्यान से सुनते रहे। मुस्लिम नवजवानों में इन्द्रेश कुमार के साथ तस्वीर खिंचवाने की होड़ लगी थी। यह देखकर मुझे लगा कि स्थापित परिपाटी को छोड़कर मुसलमान नई दिशा की तलाश तो कर ही रहा है और स्वयं को बंधुआ मानने से भी इंकार कर रहा है। ग़ाज़ीपुर को जानने वाले इस बात से परिचित होंगे कि यह दोनों घटनाएँ इतिहास बदलने वाली है। पूर्वांचल की राजनीति का मिथक तोड़कर मुसलमानों के लिए नई राह दिखाने वाली ग़ाज़ीपुर की दो विभूतियों ने समय की शिलाओं पर नई लकीर खींच दी है। अब मुसलमान बंधुआ बनकर नही बल्कि अपनी स्वतंत्र सोंच के साथ रिश्ता भी रखेगा और यह तय करेगा कि उसको किसके साथ रहना है और किसके साथ जाना है।
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