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अंग्रेजो और नेहरू ने मिलकर नीलगंज नरसंहार के सच को दबा दिया

 

वाराणसी, 21 अक्टूबर। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने वाली आजाद हिन्द सरकार के स्थापना दिवस के अवसर पर विशाल भारत संस्थान द्वारा लमही के सुभाष भवन में नीलगंज की काली डायरी विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। पश्चिम बंगाल के नीलगंज में अंग्रेजों ने आजाद हिन्द फौज के गिरफ्तार सिपाहियों का कैम्प बनाया गया था। नीलगंज में 2300 फौजियों को कैदी बनाया गया था। 25 सितम्बर 1945 की आधी रात को फौजियों को गोलियों से भून दिया गया। सुबह ट्रक में भरकर लाशों को ले जाया गया और नदी में बहा दिया गया। बाद में एक जांच आयोग का गठन हुआ जिसमें केवल 5 लोगों के मरने की पुष्टि की गई। इस घटना को नेहरू सरकार ने छुपाने का काम किया। इतने बड़े नरसंहार के साक्ष्य को मिटाने के लिए नेहरू सरकार ने जुट की फैक्ट्री बना दी, लेकिन चश्मदीदों के जेहन में यह हमेशा घूमता रहा। विभिन्न शोधकर्त्ताओं की मांग पर अब वहां एक स्मृति स्थापित किया गया।

मुख्यवक्ता सुभाषवादी विचारक तमाल सान्याल ने कहा कि नीलगंज में आजाद हिन्द फौज के गिरफ्तार योद्धाओं की हत्या सिर्फ संधियों का उल्लंघन नहीं है बल्कि मानवता के विरुद्ध है। 2300 लोगों की हाथ पैर बांधकर गोलियों से भून देना कौन सा न्याय था। नेहरू सरकार और अंग्रेज इस नरसंहार को क्यों छुपाते रहे। इतने बड़े कुर्बानी से देश आजाद हुआ। आज तक कोई सरकार 2300 सिपाहियों का पता नहीं बता पाई। आजाद भारत मे इस घटना को भूला दिया गया। इतिहास ने आजाद हिन्द सरकार के साथ न्याय नहीं किया। नीलगंज की पुरानी फ़ाइल खोली जाए। इतिहास के सच को बाहर लाया जाना जरूरी है।

विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरूजी ने कहा कि भारत के इतिहास की बड़ी भूल है आजाद हिन्द सरकार का सही मूल्यांकन न करना। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द सरकार ने विश्व पटल पर अंग्रेजों की ऐसी घेराबंदी कर दी कि अंग्रेजी हुकूमत को आजादी देनी पड़ी। आजाद हिन्द फौज की वजह से अंग्रेजों की फौज में काम कर रहे भारतीय सैनिकों की वफादारी पर भी सवाल खड़े हो गए। अंग्रेजों को लगा जब सेना ही अपनी नहीं रही तो भारत को गुलाम नहीं रखा जा सकता। नीलगंज में 2300 फौजियों के कत्ल का इतिहास सामने आने से आजादी के इतिहास के पुनर्लेखन की जरूरत है।

वरिष्ठ पत्रकार डॉ० कवीन्द्र नारायण ने कहा कि इतने वर्षों के बीत जाने के बाद जितना प्रभाव नेताजी सुभाष और उनकी फौज का रहा उतना प्रभाव किसी व्यक्तित्व का नहीं रहा। भारत के इतिहास में जो सम्मान नेताजी को प्राप्त है वह किसी को नहीं है।

संचालन अर्चना भरतवंशी ने किया एवं धन्यवाद सूरज चौधरी ने दिया।

संगोष्ठी में दीपक आर्य, नाजनीन अंसारी, डॉ० मृदुला जायसवाल, अशोक कुमार, राजेश कन्नौजिया, कन्हैया पाण्डेय, देवेन्द्र पाण्डेय, खुशी रमन भारतवंशी, इली भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भरतवंशी, ज्ञान प्रकाश, ओ०पी० पाण्डेय, अनिल पाण्डेय, सरोज देवी, सुनीता, पूनम आदि लोगों ने भाग लिया।

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