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दिनांक – 18/12/2021, दिन – शनिवार, मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय जयंती

पराशर -वाणी

विश्वगुरु दत्तात्रेय जयंती-
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(मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा, शनिवार,दिनांक 18/12/2021ई०)

दिगम्बरं भस्मविलेपिततांगं
बोधात्मकं मुक्तिकरं प्रसन्नम्।
निर्मानसं श्यामतनु भजेऽहं
दत्तात्रेयं ब्रह्मसमाधियुक्तं।।

व्रतदेवता – भगवान दत्तात्रेय
तिथि – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा, प्रदोष काल।

जीवों की अज्ञानता का निवारण और धर्म की रक्षा, अवतार के प्रमुख कारण हैं।जैसे जलपूरित महासरोवर से असंख्य स्रोत उमड़ पड़ते हैं, उसी प्रकार परोपकार के लिए भगवानके अवतार होते रहते हैं। भगवान के २४ अवतारों में सिद्धराज श्रीदत्तात्रेयजी का अवतार छठवां अवतार माना जाता है। ये समस्त सिद्धों के राजा होनेके कारण ‘ सिद्धराज’ हैं तथा तंत्र क्षेत्र में सर्वोपरि होने तथा योगविद्या में असाधारण अधिकार रखने के कारण ‘ योगिराज एवं भी हैं। अपने असाधारण योग चातुर्य से इन्होंने देवताओं का संरक्षण भी किया है, इसलिए ये ‘देवदेवेश्वर’ भी कहे जाते हैं।

अत्रि मुनि घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। महामुनि अत्रि ने कहा- मुझे प्राणियों का दु:ख निवारण करने वाला पुत्र चाहिए। भगवान विष्णु प्रसन्न होकर बोले-
‘ मैने निज को ही तुम्हें दान कर दिया है’ – इसी कारण इनकी ‘ दत्त ‘ संज्ञा हुई। ‘ दत्तोमयाहमिति यद्भगवान स दत्त:।’ अत्रिमुनि के पुत्र
होने के कारण ‘आत्रेय’ कहलाए।दत्त और आत्रेय इन दोनों नामों के संयोग से ‘दत्तात्रेय’ कहलाये। ये सदैव ज्ञानदान करते रहे इसलिए ‘सद्गुरु’
और ‘ विश्वगुरु ‘ कहलाए।

गुजरात प्रांत में गिरनार इनका सिद्ध पीठ है। इनके साथ एक गाय है जो पृथ्वी स्वरूप है और चार कुत्ते चारों वेद स्वरूप हैं। ये श्रीविद्या के परम आचार्य है। इन्होंने अपने जीवन में २४ गुरु बनाए थे जिनके नाम हैं-
पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चंद्रमा,सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, भ्रमर, हाथी, शहद निकालने
वाला, हिरण, पिंगला, वेश्या, कुरर पक्षी, बालक,क्वांरी कन्या,बाण बनाने वाला,सर्प, मकड़ी, भृंगीकीट और मछली।

आकाश सिंह (सन्नी)
आकाश सिंह (सन्नी)

इनकी चरण पादुकाएं वाराणसी तथा आबूपर्वत आदि कई स्थानों पर हैं। इन्हें यज्ञ अत्यंत प्रिय है। ये यज्ञ के भोक्ता हैं-

” यज्ञभोक्त्रै च यज्ञाय
यज्ञरूपधराय च।
यज्ञप्रियाय सिद्धाय
दत्तात्रेय नमोऽस्तुते।।

ये स्मर्तगामी हैं। इनकी जयंती पर दिन भर उपवास रहकर प्रदोष काल में इनके साथ माता अनसूया और अत्रि का भी पूजन हवन अवश्य करना चाहिए।

अलख निरंजन।।।

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